Thursday, 10 May 2018

महाराजा सूरजमल की दिल्ली विजय गाथा-प्रथम दिल्ली विजय अभियान

प्रथम दिल्ली विजय अभियान(महाराजा सूरजमल)भाग-1
दूसरा भाग पढ़ने के लिए यहां जाए-महाराजा सूरजमल की दिल्ली विजयगाथा भाग -2
पृष्ठभूमि
महाराजा सूरजमल photos
हिन्दू ह्रदय सम्राट महाराजा सूरजमल

हिन्दू ह्रदय सम्राट महाराजा सूरजमल ने तलवार की नोंक पर चलकर बहुत ही समझदारी से 1750 तक एक विशाल साम्राज्य बना लिया था।
उन्होंने आस पास के मेव मुस्लिम, रुहेले अफगान,छोटे मुगल परस्त फौजदार, व धर्महीन राजाओ को धीरे धीरे हटा दिया या उन्हें कमजोर कर दिया था।
अब उन्हें तलाश थी कुछ बड़ा करने की।वे मौके की तलाश में थे व दिल्ली की गतिविधियों पर नजर गड़ाए बैठे थे। उन्होंने दिल्ली दरबार के कई महत्वपूर्ण लोगो को अपनी तरफ कर लिया था।

आखिर 1752 में महाराजा सूरजमल के पास वह मौका आ ही गया जिसका इन्हें इंतजार था।दिल्ली के मुगल सुल्तान अहमद शाह व उसके वजीर सफदरजंग के बीच गृह युद्ध छिड़ गया था।
यह वही सफदरजंग था जो एक बार तो महाराजा सुरजमल को युद्ध के मैदान में बुलाकर उनके डर से खुद नहीं पहुंचा था और एक बार उनसे हार भी चुका था।तब इसने माफी मांग ली थी व वफादारी का वादा किया था।

तब यह ग्रह युद्ध जारी रहा दिल्ली के एक सुन्नी व शिया मुसलमान के बीच तनातनी को सुरजमल ने यूं ही चलने दिया और सही मौके का इंतजार करने लगे।
लोहा गर्म होते ही महाराज सूरजमल ने 30 अप्रैल 1753 को सफदरजंग में पक्ष में दिल्ली में ताल ठोक दी। उन्होंने दिल्ली पर आक्रमण कर दिया।
महाराजा सूरजमल सिर्फ 15000 घुड़सवारों व अपनी पैदल सेना लेकर पहुंचे थे जबकि दिल्ली के मुगल बादशाह अहमद शाह के पास 1.5 लाख की फौज थी।
महाराजा सूरजमल की सेना में जाट, नागा साधू, ब्राह्मण, गुर्जर, दलित, राजपूत आदि सब हिन्दू जाती के लोग थे।
अहमद शाह की सेना में मुस्लिम व कुछ धर्म हिन हिन्दू भी शामिल हुए थे।

30 अप्रैल की रात्रि महाराजा सूरजमल ने फरीदाबाद में बिताई व सुबह गुड़गांव में शीतला माता मंदिर में पूजा की।यह भव्य मंदिर मजराजा सुरजमल ने ही बनवाया था।पहले यहां महाभारतकालीन एक छोटा सा चबूतरा था।

लेकिन महाराजा सूरजमल के पहुंचने से पहले ही सफदरजंग को उसकी सेना में से 23000 मुस्लिम सैनिक धोखा दे गए व दिल्ली के सुल्तान की तरफ जा मिले।
लेकिन महाराजा सूरजमल ने इसकी जरा भी चिंता नहीं की।क्योंकि वे दिल्ली अपने दम पर जितने आये थे सफदरजंग का तो सिर्फ नाम ही था।

आपको बता दें कि महाराजा सूरजमल ने मुख्यतया बड़े लेवल पर दो बार दिल्ली पर आक्रमण किया था व उसे जीता था। एक बार 1753 मे जिसकी हम बात कर रहे हैं और एक बार 1763 में। वैसे उन्होंने दिल्ली पर कुछ अन्य आक्रमण भी किये थे जिनका जिक्र फिर कभी किया जाएगा।

 पुरानी दिल्ली पर भगवा राज
अंतिम हिन्दू सम्राट
महाराजा सूरजमल

(महाराजा सूरजमल दिल्ली में और इस्लाम खतरे में)

सुरजमल महाराज ने युद्ध की रणनीति बनानी शुरू कर दी। महाराजा सुरजमल के हौसले को देखकर मुगल बादशाह घबरा गया उसने अपने एक वकील महबूब द्दीन को औरंगाबाद से मलहराव होल्कर को बुला लाने के लिए भेजा। लेकिन पलवल के निकट रास्ते मे ही उसे महाराजा सूरजमल के सैनिको ने पकड़ लिया व बंदी बना लिया।
फिर महाराजा सूरजमल ने सफदरजंग को उकसाया कि 15000 रूहेले अफगानों के साथ आ रहे नजीब को रास्ते मे ही पकड़ ले लेकिन कायर व अय्याश सफदरजंग इसमे कामयाब न हो सका।

फिर महाराजा सूरजमल ने स्वयं ही मोर्चा संभाला और 9 मई को पुरानी दिल्ली की अनाज मंडी पर हमला कर दिया ताकि मुगलो की रसद राशन की लाइन टूट जाये।
उनके सेनापति राजेन्द्र गिरी गोंसाई के साथ नाग साधु व जाट सैनिकों ने प्रातः 10 मई को अनाज मंडी पर कब्जा कर लिया।इसी पहली जीत की खुशी में हर वर्ष दिल्ली विजय दिवस मनाया जाता है।
राजेन्द्र गिरी गोंसाई एक साधु थे उनकी नागा बाबाओं की सेना महाराजा सूरजमल के दल में शामिल हुई थी जिसका नाम महाराजा सूरजमल ने रामदल सेना रखा था।
इसके बाद महाराजा सूरजमल के वीर जटवाड़ा सिपाहियों ने लाल दरवाजे के पास शहर के पूर्वी हिस्से, सैयद्द बाड़ा,पँचकुई,अब्दुल्ला नगर, तारक गंज व बिजल मस्जिद के आस पास के इलाकों,चुनरिया,वकिलपुरा पर कब्जा कर लिया। अब पुरानी दिल्ली का ज्यादातर हिस्सा जाटो के कब्जे में था भगवा हर जगह छा रहा था। महाराजा सूरजमल के वीर सिपाही गिरिराज महाराज का जयकारा लगाते हुए दिल्ली की गलियों में राजा की तरह घूम रहे थे। जहां भी मुगल समर्थित मुस्लिम व्यापारी, सैनिक दिखाई दिया वहीं उसका काम तमाम कर दिया गया।
लोगो का खून चूसकर बनाई गई बड़ी बड़ी हवेलियों को तोड़ दिया गया व उनमें जितना भी माल था वह कब्जे में करके सेना के गरीब सैनिको में बांट दिया गया।

पूरे शहर को आतंकित करके तहलका मचा दिया गया। बहुत से मुगल व्यापारी व कर्मचारी मौका देखकर दिल्ली से भाग रहे थे।उनमे से कईयो को जटवाड़ा सिपाहियों ने कब्जे में ले लिया।
उस समय दिल्ली में सफदरजंग की सेना के शिया मुस्लिमो को छोड़कर ऐसा कोई मुस्लिम नहीं था जिसका कलेजा डर के मारे जोर जोर से न धड़क रहा हो।और यह डर जरूरी है।

पुरानी दिल्ली में महाराजा सूरजमल के इस तांडव को देखकर शहंशाह कांपने लग गया था। उसने तुरंत अपने वजीर की छुट्टी कर दी व इन्तिजाम उद दौला को नया वजीर नियुक्त किया।

अहमद शाह ने नारा दिया कि "सुरजमल दिल्ली में है और इस्लाम खतरे में है"
उसने सभी सुन्नी मुस्लिमो को अपने पक्ष में कर लिया व धर्मगुरुओं को भी यह नारा लगाने को कहा कि इस्लाम खतरे में है इन निर्दयी जाटो को सबक सिखाओ।

इस तरह महाराजा सूरजमल ने पुरानी दिल्ली के बहुत से हिस्सो पर कब्जा कर लिया व इस्लाम उनकव देखकर खतरे में आ गया। इसी खौफ भरे दिन को मुगलों के इत्तिहास में में जाटगर्दी के नाम से जाना जाता है।
और इसी दिन जनता का खून चूसने वाले मुगलो की हवेलियां तोड़ने व उनके ऊपर तांडव करने और उनके धन को छीनकर गरीब सैनिको को बांटने को मुगलों की नाजयज औलाद वामपंथी इत्तिहासकर दिल्ली की लूट कहते हैं।

दिल्ली में अलग अलग जगह युद्ध,वीरों के बलिदान

पुरानी दिल्ली के महत्वपूर्ण हिस्सो पर कब्जा करने के बाद मुगल शहंशाह काफी बौखला गया था उसने इस्लाम खतरे में है क्योंकि सुरजमल दिल्ली में है यह कहकर अपनी ताकत बढ़ाने की कोशिश की।
साथ ही उसने महाराजा सूरजमल को दूत भेजकर दरबार मे भारी सम्मान जागीरें आदि का वादा करके लोभ में लाने की कोशिश की लेकिन हिन्दुआ सम्राट ने शहंशाह के लिये कहा कि कायरता को लोभ लालच से छुपाना छोड़ दो अहमद शाह,अगर बाजुओं में दम है तो मैदान में आकर सीधे लड़ो।
फिर 17 मई को महाराजा सूरजमल ने मुगलो को गाजर मूली की तरह काटकर फिरोजशाह कोटला किले पर कब्जा कर लिया।मुगल सेना ने किले पर तोपें चढ़ा दी व गोले फेंके लेकिन हिन्दू वीर जाट अपनी जगह पर अडिग खड़े रहे और धीरे धीरे मुगलिया सेना को खत्म करने लग गए और हिन्दू वीर सेना के सामने मुगल नहीं टिक सके।

इसी बीच छोटे मोटे हमले चलते रहे।12 जून को ईदगाह के ब
पास एक मुठभेड़ हुई। निहत्थे हिन्दू सैनिकों पर मुगलो ने अच्चानक हमला कर दिया।इस युद्ध मे कई हिन्दू वीर जाट सैनिक शहीद हुए।
14 जून को तालकटोरा की लड़ाई हुई जिसमें मुगलों की बक्कल सी उतार दी गयी।इस युद्ध मे महाराजा सूरजमल के एक वीर उपसेनापति राजेंद्रगिरी गौसाई शहीद हो गए जिससे बहुत बड़ा झटका जाट सेना को लगा। लेकिन मुगलों की सेना इससे भी ज्यादा हिल चुकी थी।यहां एक वीर सेनापति सुरतिराम जी भी शहीद हुए।

तालकटोरा लड़ाई को भले ही जीत लिया गया हो लेकिन यह बहुत बड़ा झटका था।सफदरजंग की सेना के बहुत से सैनिक व उसके रिश्तेदार महाराजा सूरजमल को छोड़कर शहंशाह की सेना में चले गए।

शनशाह ने राजा देवी दत्त और रामनाथ को महाराजा सूरजमल से शांति वार्ता व सन्धि के लिए भेजा लेकिन यह असफल रही। दिल्ली का मुगल बादशाह थर्रा रहा था कि यह किस मिट्टी का बना हुआ है?

इसी बीच एक जुलाई को एक घमासान युद्ध हुआ जिसमें तोपखाने को बड़े स्तर पर प्रयुक्त किया गया।शहीद सुरतिराम का भाई जाट बख्शी गौकुलराम अपने भाई की मौत का बदला लेना चाहता था और इस सेना में वह हत्यारा भी था। गौकुलराम ने क्रुद्ध होकर जाट सेना के साथ मुगलो पर हमला कर दिया। इस भयंकर युद्ध मे मुगलो के पांव उखेड़ दिए।मुगल भाग खड़े हुए लेकिन गौकुलराम को एक गोला लगा जिसमे वह बुरी तरह से घायल हो गया। महाराजा सूरजमल ने उसे सम्भाल उसके अंतिम शब्द यही थे कि महाराज जी उनका पीछा करो वे बचने नहीं चाहिए। महाराजा सूरजमल को अपने वीर बक्शी की मृत्यु का बहुत धक्का लगा उन्होंने बिजली से वेग से मुगलो का पीछा किया व दोनो वीरों की शहादत के जिम्मेदार दुष्टो व अनेकों मुगल सैनिको को काटकर फेंक दिया।

फिर महाराजा सूरजमल ने सफदरजंग को कहा कि हमें शत्रु को खुले में सीधे आमने सामने भिड़ने के लिए  मजबूर किया जाए। इसलिए रणनीति के तहत महाराजा सूरजमल 16 जुलाई को वीर भूमि तिलपत पहुंच गए।
तिलपत वहीं वीर भूमि है जहां पर वीर गौकुला के नेतृत्व में धर्म रक्षा हेतु औरँगेजेब के खिलाफ लड़ते हुए हजारों जाट शहीद हुए थे।

इसी बीच मुगलों की रूहेला फौज ने दिल्ली के पास के कुछ इलाकों में रात्रि को आम नागरिकों पर हमला किया व धन दौलत लूटी और कई औरतों का अपमान किया।

इस पर हिंदुआ सम्राट महाराजा सूरजमल क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने बेटे वीर जवाहर सिंह, बल्लभगढ के राजा बलराम सिंह व उनके साथ ही राज गुजर को रुहेलों को दंड देने के लिए भेजा।महाराजा जवाहर सिंह ने रुहेलों के किले गढ़ी मैदान पर हमला कर दिया।एक लंबी व भीषण लड़ाई छिड़ गई। रुहेले मुल्लो को गाजर मूली की तरह काट दिया गया।सिर्फ वे ही बचे जो युद्ध के बीच मे ही मौका देखकर भाग निकले थे।इस तरह महाराज जवाहर सिह ने हिन्दुओ के अपमान का बदला लिया।

मुगलिया सल्तनत हिल गयी थी लेकिन इसी बीच 2000 जेटा गुजर व 4000 मराठे मुगलो के पक्ष में आ गए। मुगलो ने उन्हें लड़ने के लिए पैसा देने का वादा किया था।

लेकिन अब भी महाराजा सूरजमल ने जरा भी चिंता नहीं की।
30 जुलाई रमजान के दिन महाराजा सूरजमल व शाही सेना के बीच झड़प हुई लेकिन अंततः मुगलो को ही भागना पड़ा।रमजान की नमाज उनके भाग में नहीं रहने दी गई।
इसी तरह कई जगह छिटपुट लड़ाई चली रही।19 जुलाई को जाट सेनापति शिवसिंह व मुगल सेना समर्थित मराठे आमने सामने हो गए।एक दिशन युद्ध हुआ बहुत से जाट व मराठे मारे गए। हिन्दू वीर शिवसिंह अपनी धर्मरक्षा पर अडिग रहे उनके पांव में एक भाला लग गया जिसके कारण वे घायल हो गए। युद्ध अनिर्णायक रहा।रात्रि होते ही युद्ध समाप्त हो गया हिन्दू वीर जाट व मुगल समर्थित मराठे अपने अपने शिविरों में चले गए।
शिवसिंह का यह घाव संक्रमित हो गया जिस कारण उनकी मृत्यु हो गयी।

फिर 5-6 सितंबर को 5000 जटवाड़ा सिपाही फरीदाबाद में मुगलो से भिड़ गए। मुगलिया सेना को मैदान छोड़कर भागना पड़ा।मुगलो की रसद का मार्ग काट दिया गया। हालांकि इस कार्यवाही में वीर जाट सरदार मोहकम सिंह जी शहीद हो गए।

इसके बाद मुगलों का सेनापति इमाद बुरी तरह से घबरा गया था उसने होल्कर व शिंदे से सहायता मांगी व उन्हें 1 करोड़ रुपए व अवध और इलाहाबाद की सूबेदारी देने का वादा किया।इससे मुगलों की ताकत और बढ़ गयी।

तगलकाबाद के यमुना तट पर भी मराठों व जाटों के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ।यह ययध लंबा चला लेकिन अंत मे मुगल समर्थित मराठों को ही पीछे हटना पड़ा।
यहां महाराजा सूरजमल के वीर पुरोहित घमंडीराम(ब्राह्मण) जी घायल हो गए थे। महाराजा सूरजमल स्वयं उन्हें अपने घोड़े पर बैठाकर शिविर में लेकर गए व वहां उपचार शुरू करवाया।

दिल्ली की तरफ से फिर समझौते के लिए निमंत्रण आया लेकिन विफल रहा।

इस समय तक महाराजा सूरजमल दिल्ली के बहुत से हिस्सों पर काबिज थे लेकिन अब मुगलों के सेनापति इमाद की शक्ति बढ़ती जा रही थी।उसकी सेना की संख्या तेजी से बढ़ रही थी।जिसकी चिंता महाराजा सूरजमल को ही नहीं बल्की मुगल शंहशाह अहमद शाह को भी हो रही थी। अब मुगल बादशाह को लग रहा था कि अगर सुरजमल से पीछा छूट गया तो इमाद से कौन बचाएगा उसे डर था कि कहीं इमाद बाद में विद्रोह न कर  दे व स्वयं राजा ना बन जाये।
अब मुगल बादशाह को सुरजमल के अलावा इमाद का भी भविष्य में डर था।
महाराजा सूरजमल की सेना सशक्त थी लेकिन अब इमाद की सेना संख्या में इतनी हो गयी थी के सशक्ति से भी काम न चलना था।

कायर मुगल बादशाह ने जयपुर के महाराजा माधो सिंह कच्छवाहा को सन्धि करवने के लिए बुलाया।

अंतिम महान युद्ध
आगे पढ़ने के लिए क्लिक करें- महाराजा सूरजमल की दिल्ली विजयगाथा -भाग 2



4 comments:


  1. महाराजा सूरजमल की महानता हमें बहुत कुछ सिखाती है। उनके साहस को नमन है। मैंने भी महाराज सूरजमल के बारे में कुछ लिखा है। आप मेरी वेबसाइट पर पढ़ सकते हैं।
    https://historypandit.com/maharaja-surajmal/

    ReplyDelete
  2. Very proud history of maharaja surajmal

    ReplyDelete
  3. जाट होने पर गर्व

    ReplyDelete
  4. Jai ho Maharaja Surajmal ji ki 🙏🙏

    ReplyDelete