Thursday 31 May 2018

कैराना उपचुनाव: क्या जाटों ने नहीं दिए RLD को वोट

जाट बाहुल्य सीटों पर BJP की बढ़त
Jatwada News
कैराना उपचुनाव के पश्चात ही जाटो के रुख पर मीडिया व सोशल मीडिया दोनो जगह ही तेज बहस चल रही थी।
नतीजे आने के बाद RLD के कुछ समर्थक जाटो के वोटो का श्रेय लेते दिखे तो कुछ BJP भक्त भी हार का ठीकरा जाटों पर फोड़ते मिले। हालांकि कुछ ज्ञानी BJP विश्लेषक जाटो का वोट BJP को मिलने की भी बात कर रहे थे।

तो चलिए विश्लेषण करके देखते हैं कि जाटों का रुख किस्य ओर रहा।
कैराना लोकसभा में थानाभवन, शामली, कैराना, गंगोह और नकुड़ सीटें शामिल हैं जिनमे से शामली व कैराना जाट बाहुल्य सीट हैं।
BJP की शामली व कैराना दो जगह पर ही बढ़त रही और गौरतलब है कि ये दोनों सीट ही जाट बहुल है। 

इन नतीजो से यह बात तो स्पष्ट है कि जाटो का रुख BJP की ओर ही रहा।

अब अगर सम्पूर्ण नतीजों पर निगाह डाले तो 
कैराना लोकसभा सीट पर 5 लाख मुस्लिम वोट हैं तथा 5.5 लाख हिन्दू वोट बैंक है। हिन्दुओ में 2.5 लाख दलित वोट हैं तो 3 लाख बाकी जातियों की वोट संख्या है जिसमे से जाटो के वोट लगभग 1 लाख 20,000 हैं। जो शामली व कैराना क्षेत्र में ज्यादा हैं।

कैराना की हार के सच से मुंह चुरा रहे हैं राजनीतिक और न्यूजचैनली मठाधीश।- सतीश चंद्र
ना कोई जाट मुस्लिम एकता हुई। ना कोई दलित लामबंदी हुई। ना ही कोई किसानों नौजवानो की नाराजगी थी। न्यूजचैनलों पर राजनीति और मीडिया के प्रायोजित मठाधीश अपने ऐसे डॉयलॉगों से हमारी आपकी आंखों में धूल झोंक रहे हैं। कैराना उपचुनाव के परिणामों के मूल कारणों से मुंह चुरा रहे न्यूजचैनली/मीडियाई मठाधीश दरअसल यह स्वीकार करने का साहस नहीं कर पा रहे हैं कि कैराना में धुर साम्प्रदायिक आधार पर प्रचण्ड मुस्लिम ध्रुवीकरण हुआ। ध्यान रहे कि उत्तरप्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 16 सीटें ऐसी हैं जिनमें मुस्लिम मतदाता 20 से 50 प्रतिशत तक हैं। 35 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं के आंकड़ें के साथ कैराना इन्हीं 16 लोकसभा सीटों की सूची में शामिल है। 
#अब जरा इन तथ्यों और आंकड़ों को पूरा और ध्यान से पढ़िए...
कैराना लोकसभा सीट पर मतदाताओं की कुल संख्या लगभग 16,90,000 मतदाता हैं। इसमें मुस्लिम मतदातों की संख्या लगभग 35%, अर्थात कैराना में लगभग 5 लाख 65 हज़ार मुस्लिम मतदाता हैं। 
इस उपचुनाव में कैराना में लगभग 55%  मतदान हुआ था। अर्थात लगभग 9 लाख 43 हज़ार मत पड़े थे।
यह जग जाहिर तथ्य है कि कैराना लोकसभा सीट पर मुस्लिम मतदाताओं का मतदान प्रतिशत सामान्य मतदान से अधिक प्रतिशत में हुआ था। 
अतः बहुत कंजूसी से यदि यह मान लीजिए कि मुस्लिम मतदाताओं का मतदान कुल मतदान से केवल 5% अधिक हुआ तो कैराना में कुल मुस्लिम वोट लगभग 3,40,000 पड़ा। जबकि वास्तविकता संख्या इससे अधिक ही होगी। दिल्ली से लेकर देवबंद तक जारी हुए मोदी-योगी हराओ वाले फतवों और भाजपा बनाम सब की चुनावी स्थिति के बाद यह 3,40,000 मुस्लिम वोट भाजपा के पक्ष में गए होंगे, ऐसा मूर्खतापूर्ण निष्कर्ष राजनीतिक धरातल की कठोर और कटु सच्चाई से पूरी तरह अनभिज्ञ कोई राजनीतिक अनपढ़/गंवार ही निकाल सकता है। मेरा अपना मानना है कि इनमें से ज्यादा से ज्यादा 5 से 10 हज़ार मत ही भाजपा को मिले होंगे। सम्भव यह भी है कि वो भी नहीं मिले होंगे। 
2014 में कैराना में 15,31,642 मतदाता थे। उस समय सपा बसपा और RLD-कांग्रेस गठबन्धन अलग अलग चुनाव लड़े थे। उनके तीनों प्रत्याशियों को कुल मिलाकर 5,32,201 मत मिले थे। 
इसबार इन सारे दलों के गठबन्धन की संयुक्त प्रत्याशी तबस्सुम हसन को 481182 मत मिले हैं। इनमें अर्थात गठबन्धन प्रत्याशी को 2014 की तुलना में लगभग 51 हज़ार मत कम मिले हैं। यहां यह ध्यान रखिये कि 2014 में 73.08% मतदान हुआ था। जबकि इस उपचुनाव में 55% मतदान हुआ है। अर्थात 2014 की तुलना में लगभग 2 लाख मत कम पड़े हैं। यहां यह भी ध्यान रखिये कि 2014 में तीनों दलों के प्रत्याशी अलग अलग थे। उन तीनों दलों के प्रत्याशियों और उनकी कोर टीम के सदस्यों के व्यक्तिगत प्रभाव वाले मत भी 5,32,201 मतों में शामिल थे। राजनीति के रसायन को समझने वाले यह भलीभांति जानते हैं कि किसी भी दल के प्रत्याशी के व्यक्तिगत सम्बन्धों/सम्पर्कों वाले मतों का दलीय राजनीति से कोई लेनादेना नहीं होता।
उस समय तीनों दलों को मिले वोटों में कम से कम 5-6% वोट उन प्रत्याशियों का व्यक्तिगत वोट था।
अतः आंकड़ों की उपरोक्त सच्चाई यह तो बता ही रही है कि 2014 में गठबन्धन को जितने मत मिले थे उससे मात्र 20-25 हज़ार कम मत उसे इसबार कम मिले हैं। यानी कि मोदी विरोधी राजनीतिक ताकतों का प्रदर्शन जितना सम्भव हो सकता था उतना ही हुआ। इसके बावजूद भाजपा प्रत्याशी मृगांका सिंह मात्र 44618 मतों से हारी हैं। उन्हें 4,36,564 मत मिले हैं। भाजपा को 2014 की तुलना में लगभग 1,30,000 मत कम मिले हैं, क्योंकि 2014 में भाजपा को 5,65,909 मत मिले थे। लेकिन यह 1,30,000 मत विपक्षी गठबन्धन के खाते में नहीं गए। इसके बजाय भाजपा का यह वोटर मतदान के लिए नहीं निकला। इसके कई कारण हैं। पहला तो यही है कि इस उपचुनाव का देश या प्रदेश की सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना था। उपचुनाव में भाजपा का मतदाता उदासीन रहता ही है।
अनुमान लगाइए कि 2019 में जिस समय 2019 मे देश का प्रधानमंत्री, सरकार चुनने के लिए जब वोट डाले जाएंगे तब मृगांका सिंह की 44 हज़ार मतों से हार का अन्तर किस तरह निष्प्रभावी होगा।
यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि उत्तरप्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 16 सीटें ऐसी हैं जिनमें मुस्लिम मतदाता 20 से 50 प्रतिशत तक हैं। 35 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं के आंकड़ें के साथ कैराना इन्हीं 16 लोकसभा सीटों की सूची में शामिल है। अतः ऐसे कैराना लोकसभा क्षेत्र में गठबन्धन की पूरी ताकत झोंकने के बाद केवल 44 हज़ार मतों की हार एक सुखद सन्देश है कि फिलहाल प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार की साख बरकरार है और 2019 की कसौटी के लिए पूरी तरह तैयार है।

उपरोक्त तर्कों के आधार पर कहा जा सकता है कि जाटो ने वोट जातिवाद में न फंसकर हिंदुत्व के आधार पर ही दिया है।
व यह हार BJP की खामियों एवं हिन्दुओ की वोट डालने के प्रति उदासीनता के कारण हुई है।BJP को अगर आगे भी ये वोट चाहिए तो उसे हिन्दू जाट वोट बैंक को और मजबूत करना चाहिए व किसानों, रोजगार, रोजमर्रा की सुविधाओं और सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए और मुस्लिम वोट का प्रलोभन कम कर देना चाहिए क्योंकि उन वोट का धुर्वीकरण साम्प्रदायिक आधार पर ज्यादा होता है।

RLD भी जाट वोट बैंक के खिसकने की बात छुपा रही है अब उसे इस सच को स्वीकार लेना चाहिए कि जाटो को अपने साथ रखना है तो जाटो को सिर्फ वोट बैंक समझने की राजनीति का त्याग करना होगा। और साथ ही अपना वजूद बढ़ाना होगा क्योंकि अब जाट फिर से कोई चौधरी चरण सिंह चाहते हैं व हिन्दू धर्म और आस्था के रूप में भी सम्मान चाहते हैं।

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