Wednesday 20 June 2018

स्वामी इंद्रवेश जी ढाका- महान समाज सुधारक, गौरक्षक, आर्य समाजी

आर्य समाज के महान पुरोधा स्वामी इंद्रवेश ढाका जी

जाट
स्वामी इंद्रवेश जी

स्वामी इंद्रवेश जी का जन्म रोहतक के sudana गांव के एक हिन्दू जाट(ढाका गौत्र) परिवार में हुआ था।
वे बचपन से ही मेधावी छात्र थे और स्वामी दयानंद सरस्वती जी की शिक्षाओं से प्रभावित थे।
वे हरियाणा आर्य प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने आर्य समाज का प्रचार किया व बहुत से गुरुकुलों में अपनी सेवा प्रदान की।पदयात्राओं, शिविरों, व्यायाम-प्रदर्शनों व जनचेतना यात्राओं के माध्यम से आर्य समाज का प्रचार करने की परम्परा उन्होंने ही प्रारम्भ की ।
आर्य समाज के मूल्यों को फैलाने में ऊनका विशेष योगदान रहा।

1966 में उन्होंने गौरक्षा वांडोलन के द्वारा गौहत्या निषेध कानून बनाने के लिए भी पुरजोर आवाज उठाई।

1967 में उन्होंने आर्य युवक परिषद का गठन किया और युवाओ को वैदिक शिक्षा के प्रति जागरूक किया।

1967 में कुरुक्षेत्र से दिल्ली तक की पदयात्रा का ऐतिहासिक आयोजन किया । यह यात्रा सैंकड़ों गांवों, कस्बों व नगरों से होती हुई पन्द्रह दिन बाद दिल्ली के ऐतिहासिक लालकिले के समक्ष जलती मशाल हाथों में लेकर आर्य राष्ट्र की स्थापना के संकल्प के साथ सम्पन्न हुई । 

1968 में उन्होंने राजधर्म पत्रिका की शुरुआत की जो emergency के वक्त उस समय के लिए कांग्रेस सरकार द्वारा बन्द कर दी गयी थी व बाद में शुरू हुई थी

1969 में उन्होंने कुंडली बूचड़खाना बन्द करवाने में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया।

1969 में हरयाणा की जनता के द्वारा छेड़े गए चण्डीगढ़ आन्दोलन में युवावर्ग का नेतृत्व करते हुये स्वामी इन्द्रवेश व उनके साथी जेल गये । रोहतक सेन्ट्रल जेल में ही उन्होंने सन्यास लेने का संकल्प लिया ।

7 अप्रैल 1970 को दयानन्द मठ रोहतक में स्वामी इन्द्रवेश जी ने स्वामी अग्निवेश एवं स्वामी सत्यपति के साथ वेदों के प्रकाण्ड विद्वान स्वामी ब्रह्ममुनि जी से सन्यास की दीक्षा ली । उसी दिन स्वामीद्वय ने आर्य राष्ट्र के निर्माण का संकल्प लेते हुए आर्यसभा नाम से राजनैतिक पार्टी की भी स्थापना कर ली तथा सक्रिय राजनीति में उतर गये ।

1972 में विधानसभा के चुनावों में आर्यसभा के दो विधायक चुने गये तथा आर्यसभा हरयाणा की सर्वाधिक वोट प्राप्त करने वाली विपक्षी पार्टी बन गई ।

 फिर गेंहू के मूल्य बढ़वाने के लिए किसान आंदोलन का नेतृत्व किया।

सन् 1974 में आर्यसमाज की सर्वाधिक सशक्त सभा आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब जिसमें दिल्ली, हरयाणा, पंजाब की आर्य समाजें, शिक्षण संस्थायें व गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, कन्या गुरुकुल देहरादून, गुरुकुल काँगड़ी फार्मेसी आदि सम्मिलित थीं, के चुनाव में प्रधान चुने गये तथा गुरुकुल कांगड़ी के कुलाधिपति बने । यह चुनाव हाईकोर्ट की देखरेख में संपन्न हुआ था ।

1975 में उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी के आंदोलन में सक्रिय हिस्सा लिया जिसके कारण उन्हें लम्बे समय तक जेल भी जाना पड़ा।

सन् 1975 में आपातकाल के दौरान मीसा के अन्तर्गत नजरबंद किये गये । इमरजेंसी के बाद आर्यसभा का अन्य सभी पार्टियों की तरह जनता पार्टी में विलय कर दिया गया तथा सन् 1980 के लोकसभा चुनाव में आप रोहतक से लोकदल के टिकट पर सांसद चुने गये ।

1986 में पंजाब हरयाणा की boundry व जलीय बंटवारे से सम्बंधित राजीव - लोंगोवाल समझौते का विरोध किया व पंजाब में बढ़ रहे उग्रवाद के खिलाफ 21 दिन तक भूख हड़ताल की।

स्वामी जी की अध्यक्षता में गठित वेदप्रचार आयोजन समिति के तत्वाधान में वर्ष 1986 में कुम्भमेला हरद्वार में चालीस दिन का वेदप्रचार शिविर लगाया गया जिसमें गाय के घी से चतुर्वेद पारायण यज्ञ, विभिन्न सम्मेलन, योग शिविर, ऐतिहासिक शोभायात्रा एवं शास्त्रार्थ की चुनौति देकर पौराणिक जगत् में हलचल पैदा की, 1986 के वेदप्रचार शिविर से पूर्व कुम्भ मेले में आर्य समाज का शिविर लगभग 60 साल पहले लगा था । स्वामी जी द्वारा प्रारम्भ किये गये उक्त क्रान्तिकारी कार्यक्रम को अभी तक प्रत्येक कुम्भ मेले में चलाया जा रहा है । सन् 1986 के कुम्भ मेले पर स्वामी प्रकाशानन्द व स्वामी योगानन्द सहित दस सन्यासी बने थे।

1987 में उन्होंने एक राजपूत विधवा रूप कंवर को धक्के से सती करने के खिलाफ दिल्ली-देवराला(देवराला राजस्थान जहां एक राजपूत स्त्री को जिंदा जलाने की कोशिश की गई)पदयात्रा निकाली व अपराधियो पर कार्यवाही और सती प्रथा बन्द के लिए आवाज उठाई।जिसके कारण सरकार को संसद के तहत कानून बनाना पड़ा।

न् 1987 में ही दिल्ली से पुरा महादेव (मेरठ) तक आयोजित पदयात्रा का संरक्षण स्वामी इन्द्रवेश जी ने किया । यह यात्रा भी पुरी के शंकराचार्य निरंजन देव तीर्थ को सती के सवाल पर शास्त्रार्थ की चुनौति देने के लिए आयोजित की गई थी । इस कार्य में पूरे आर्य जगत में नई ऊर्जा पैदा हुई थी ।

1993 में उन्होंने दिल्ली से हिसार तक शराब बंदी के लिए यात्रा निकाली व शराब के बुरे प्रभावों के बारे में लोगो को जागृत किया।

बागपत में मायात्यागी काण्ड के बाद ग्यारह सौ सत्याग्रहियों के साथ सत्याग्रह करके एक महीने तक बरेली जेल में रहे तथा बाद में हरयाणा लोक संघर्ष समिति के माध्यम से हरयाणा में जोरदार जेल भरो आन्दोलन चलाया । विदित हो कि मायात्यागी को पुलिस ने भरे बाजार में नंगा करके घुमाया तथा अपमानित किया था जो महिलाओं पर किये जाने वाले अत्याचार का ज्वलन्त उदाहरण था ।

उन्होंने कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ भी लोगो को जागृत किया और शिक्षा के प्रसार प्रचार में बहुत बड़ा योगदाब दिया।

1998 में bjp join की और रोहतक से चुनाव लड़ा।

सन् 2001 में आर्य प्रतिनिधि सभा हरयाणा के प्रधान निर्वाचित हुये । वर्तमान में आप आर्य विद्यासभा गुरुकुल कांगड़ी के प्रधान पद को सुशोभित कर रहे थे ।

ब्रह्मचर्य, व्यायाम प्रशिक्षण एवं युवानिर्माण शिविरों के माध्यम से पूरे देश में युवक क्रान्ति अभियान चलाया त्था आर्यसमाज में नया जीवन फूँका । शिविरों के माध्यम से लाखों युवकों को आर्यसमाज से जोड़ा ।और सैंकड़ो को सन्यास व ब्रह्मचर्य की दीक्षा भी दी।

स्वामी इन्द्रवेश जी ने अपने जीवन का एक-एक क्षण समाज परिवर्तन के लिए लगाया । उनके तेजस्वी व्यक्तित्व से प्रभावित होकर अनेक लोगों ने अपना जीवन समाज सेवा में अर्पित किया । उनकी पुण्यतिथि पर हमें एक ही संकल्प लेना चाहिये कि जिस पवित्र निष्ठा के साथ स्वामी जी ने महर्षि दयानन्द के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए अपने जीवन की आखिरी सांस तक संघर्ष किया उसी प्रकार हम सब सप्तक्रान्ति अर्थात् जातिमुक्त, साम्प्रदायिकतामुक्त, नशामुक्त, भ्रष्टाचारमुक्त, नारी उत्पीड़नमुक्त एवं शोषणमुक्त समाज की स्थापना के लिए कृतसंकल्प रहेंगे । हम आपस के सभी भेदभाव मिटाकर इस मिशन में जुटें, यही स्वामी जी की अन्तिम इच्छा थी ।

12 जून 2006 को उनका देहांत हो गया वे अन्य कई आर्य संस्थानो एवं सँगठनो के अध्यक्ष रहे।कई किताबें व आंदोलन किया।भयत से गुरुकलों को उन्होंने अपनी सेवा से जीवंत कर दिया।

इस महान आत्मा को कोटि कोटि नमन।

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