Sunday 24 June 2018

जाटों की उत्पत्ति(origin of Jats)

जाट जाति की उतपत्ति-


अलग अलग विद्वानों ने जाटो के बारे में
राजपूत गुर्जर अहीर आदि जातियों की
तरह अलग अलग मत दिये है जो इस प्रकार है-

महादेव से उतपत्ति-
महाऋषि गोरख सिन्हा ने देव संहिता व खाप
इत्तिहास में जाटो की उतपति भगवान शिव से
बताई गई है। महाभारत में भगवान शिव को
महाजट कहकर पुकारा गया है।देव संहिता
के श्लोक खाप इत्तिहास में भी अंकित है।
उनमें जाट को महाक्षत्रिय महावीर कहा
गया है।महादेव की जटाओं से उतपन्न होने
का अर्थ है कि जाट जाति शीर्ष प्रधान
राजा है। जट का अर्थ भी
राजा,प्रधान,शीर्ष होता है।

भगवान श्रीकृष्ण से उतपति-
जाटों को भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा बनाया गए
ज्ञाति संघ से भी जोड़ा जाता है।
जाटो में यदुवंशी गौत्र यानी भगवान के
बहुत से वंशज हैं।हिन्दू ह्रदय सम्राट
महाराजा सूरजमल भी कृष्णवंशी जाट ही
थे।

सूर्यवंश नागवंश से उतपति-
 कई इतिहासकारों ने जाटो को नागवंशी
सूर्यवँशी क्षत्रिय लिखा है। जाटों में
नागवंशी सूर्यवँशी क्षत्रियों की एक
बड़ी संख्या हैं भगवान राम के वमशज
रघुवंशी भी जाटो में है और जाट सम्राट
महाराजा हर्षवर्धन बैंस भी नागवंशी
सूर्यवँशी क्षत्रिय ही थे।व महादेव के भक्त
थे।नागवंशी जाट आज भी सांपों को
मारना उचित नहीं समझते।

युद्धिष्ठिर(पांडवो) से उतपत्ति-
युद्धिष्ठिर को ज्येष्ठ होने के कारण
ज्येष्ठ या जेठर कहा गया है जिस कारण
जाटो की उतपति को उनसे जोड़ा
जाता हैं। हालांकि जाटो में एक बड़ी
संख्या में चन्दरवंशी क्षत्रिय गौत्र हैं
पांडवो व कौरवों के वंशज तोमर पांडु व
अन्य बहुत से गौत्र हैं।
#विदेशी_मूल- बहुत से विदेशी विद्वानों
ने आर्यों को विदेशी लिखा है जिस
कारण वे जाट राजपूत गुर्जर अहीर को
विदेशी शक सीथियन आदि से लिखते हैं।
हालांकि आर्य के आक्रमण की थ्योरी
अब नष्ट हो चुकी है आर्य भारतीय ही थे।
यह भी सत्य है कि गुर्जर राजपूत अहीर
जाट आदि बहुत सी जातियों में कुछ
आधा 1% विदेशी भी आकर मिश्रित हुए
हैं।

निष्कर्ष
इन सब मतों के आधार पर यह सर्वविदित है
कि जाट महाक्षत्रिय आर्य व मूल
भारतीय हैं।जाटो में सूर्यवंश व नागवंश
(जो सूर्यवंश का ही भाग है),चन्द्रवंश व
यदुवंश (जो चन्दरवंश का ही भाग है) ये
दोनो वंश बराबर संख्या में विद्धमान है।
अत्रि,कश्यप जैसे बहुत से ऋषिकुल के गौत्र
भी जाटो में विद्यमान है।
ज्यादातर मुख्य जाट गौत्रों का जिक्र
वेद,महाभारत,पुराण आदि प्राचीन
गर्न्थो में है।
जट का अर्थ राजा शीर्ष प्रधान होता
है और यह उपाधि सर्वप्रथम भगवान शिव ने
धारण की थी।
जाट भगवान शिव,उनके रुद्रांश भगवान
बजरंग बली,भगवान श्री कृष्ण,भगवान
राम,माता शक्ति पार्वती व शेरांवाली
माता को सबसे ज्यादा पूजते हैं।इसके
अलावा अपने ग्राम देवता और क्षेत्रीय व
कुलदेवता कुलदेवी को पूजते हैं।कुलदेवी के
मंदिर पर बच्चे होने पर उनका झुबला
उतरवाने व पूजा करने जरूर जाते हैं।हर साल
क्षेत्रीय या कुलदेवता का मेला लगाते हैं।
दशहरा पर शस्त्रपूजा करते हैं।
आज के समय मे मुखयतः जाट मराठा
राजपूत गुर्जर यादव खेती करते हैं आर्यों
का मुख्य व्यवसाय खेती ही था।जाटों ने
शुरू से ही सनातन वैदिक हिन्दू धर्म का
कट्टरता से पालन किया है।सबसे ज्यादा
शाकाहारी,सनातनी,गौभक्त जाती के
रूप में अपनी पहचान बनाई है। जब सनातन
धर्म पर आंच आई तो सिख पन्थ बनाया
गया था।उस समय जब गुरुओ ने सिरों की
मांग की तो सबसे ज्यादा जाटो ने ही
अपने बड़े बेटे दान किये थे। ज्यादातर जाट
गुरु अर्जुन देव जी गुरु गोविंद सिंह जी व
बन्दा सिंह बहादुर जी के साथ ही लड़ने के
लिए भर्ती हुए थे जिनमें से कई सिख बन गए।
उत्तर भारत मे हिन्दू धर्म को व भारतीय
सीमाओं को सुरक्षित करने में जाटो का
सबसे ज्यादा योगदान रहा है।
चंद्रव्याकरण में भी जट झट संघाते, अजेय
जट्टो हुनान(अर्थत जाटों ने हूणों को
हराया) लिखा है।
महाराजा शैलेन्द्र जाट का राज्य 409 ई0
के आस पास स्यालकोट से लेकर
राजस्थान तक रहा है।
अतः जाटों की प्राचीनता भी
सर्वविदित है।जाट राजक्षेत्र को
जटवाड़ा नाम से सम्बोधित किया
जाता है।
निष्कर्ष यही है कि जाट सर्वश्रेष्ठ व
प्राचीनतम क्षत्रिय हैं।

जय जय जटवाड़ा
जय महाराजा सूरजमल
ॐ।हर हर महादेव।ॐ
जय भारतभूमि

संदर्भ-इतिहासकार ठाकुर
देशराज,दिलीप सिंह अहलावत,उपेंद्रनाथ
शर्मा,कालिके रंजन,मोहनलाल गुप्ता,vs
अग्रवाल,जदुनाथ सरकार,महाऋषि
गोरख सिंह,खाप इत्तिहास आदि सबका निष्कर्ष

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