Saturday 18 August 2018

महाराजा कंवरपाल सिंह की जीवनगाथा- कस्वांवती राज्य

कस्वांपद राज्य
आज ही के दिन 19 अगस्त 1068 को सिधमुख को अपनी राजधानी बनाई थी।

कस्वांवती राज्य
राजधानी-सिधमुख(चुरू)

सूर्यवँशी कंस्वा भगवान श्री राम के वंशज हैं।
कंसुपाल सिंह कस्वां
Maharaja Knwarpal Singh Kanwan

दयालदास, पाऊलेट, मुंशी सोहन लाल आदि इतिहासकारों ने कसवा जाटों के राज्य कस्वांजनपद के बारे में लिखा है कि कसवां जाटों का प्रमुख ठिकाना सीधमुख था और कसवां कंवारपाल यहां के राजा थे तथा 400 गाँवों पर उनकी सत्ता थी तथा सिधमुख राजधानी थी।
महाराजा कंवरपाल कंस्वा धर्मनिष्ठ व वीर यौद्धा थे।

महाराजा कंवरपाल(कंसुपाल) सिंह कंस्वा अपनी 5000 सेना के साथ तालछापर आए, जहाँ मोहिलों का राज था. कंवरपाल जी ने मोहिलों को हराकर छापर पर अधिकार कर लिया.

इसके बाद वह आसोज बदी 4 संवत 1125 मंगलवार (19 अगस्त 1068) को सीधमुख आये. वहां जाट राजा रणजीत जोहिया राज करते थे जिनके अधिकार में 125 गाँव थे. लड़ाई हुई जिसमें 125 जोहिया तथा कंस्वा के 70 लोग वीरगति को प्राप्त हुए. इस लड़ाई में कंवरपाल विजयी हुए. सीधमुख पर कंवरपाल का अधिकार हो गया और वहां पर भी अपने थाने स्थापित किए.

सीधमुख विजय के बाद महाराजा कंवरपाल सात्यूं (चुरू से 12 कोस उत्तर-पूर्व) आये, जहाँ चौहानों के सात भाई (सातू, सूरजमल, भोमानी, नरसी, तेजसी, कीरतसी और प्रतापसी) राज करते थे. कंसुपाल ने यहाँ उनसे लड़ाई की जिसमें सातों चौहान भाई मरे गए.
 फाल्गुन सुदी 2 शनिवार, संवत 1150, 18 फरवरी, 1094, के दिन कंवरपाल जी का सात्यूं पर कब्जा हो गया. फ़िर सात्यूं से कसवां लोग समय-समय पर आस-पास के भिन्न-भिन्न स्थानों पर फ़ैल गए और उनके अपने-अपने ठिकाने स्थापित किए.

महाराजा कंवरपाल कंस्वा जी के बाद क्रमशः राजा कोहला, राजा घणसूर, राजा महसूर, राजा मला, राजा थिरमल, राजा देवसी, राजा जयसी और राजा गोवल सीधमुख के शासक हुए. गोवल के 9 लडके थे- चोखा , जगा, मलक, महन, ऊहड, रणसी, भोजा और मंगल. इन्होने अलग अलग ठिकाने कायम किए जो इनके थाम्बे कहे जाते थे.

चोखा के अधिकार में 12 गाँव यथा दूधवा, बाड़की, घांघू, लाघड़िया, सिरसली, सिरसला, बिरमी, झाड़सर, भुरड़की इत्यादि.
बरगा के अधिकार में हड़ियाल, महणसर, गांगियासर, लुटू, ठेलासर, देपालसर, कारंगा, कालेराबास (चुरू का पुराना नाम) आदि ,
रणसी के अधिकार में जसरासर, दूधवामीठा, रिड़खला, सोमावासी, झारिया, आसलखेड़ी, गिनड़ी, पीथीसर, धीरासर, ढाढर, बूंटिया इत्यादि.
जगा के अधिकार में गोंगटिया, बीगराण, मठौड़ी, थालौड़ी, भैंरूसर, इन्दरपुरा, चलकोई आदि तथा
ऊहण के अधिकार में नोपरा, जिगासरी, सेवाटादा, मुनड़िया, रुकनसर आदि. इसी प्रकार अन्य थामों के नाम और गाँवों का वर्णन है. परवाना बही राज श्रीबिकानेर से भी ज्ञात होता है की चुरू के आसपास कसवां जाटों के अनेक गाँव रहे थे यथा चुरू (एक बास), खासोली, खारिया (दो बास), सरसला, पीथुवीसींसर, आसलखेड़ी, रिड़खला (तीन बास), बूंटिया, रामसरा, थालोड़ी, ढाढर, भामासी, बीनासर, बालरासर, भैंरुसर (एक बास), ढाढरिया (एक बास) धान्धू, आसलू, लाखाऊ, दूधवा, जसरासर, लाघड़िया, चलकोई आदि.
कंवरपाल जी के एक वंशज चोखा ने संवत 1485 माघ बदी 9 शुक्रवार (31 दिसम्बर 1428) को दूधवाखारा पर अधिकार कर लिया.

विक्रम की 16 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में अन्य जाट राज्यों के साथ कसवां जाटों के राज्य को भी राठोडों ने अधिकृत कर लिया.क्योंकि यह जाट राज्य अगली पीढ़ी तक छोटे छोटे ठिकानों में बंट गया थे।व आपसी द्वेष के कारण एकजुट नहीं हो सके। ईसलिये सबने बिका जी के साथ सन्धि कर ली व उनके राज्य में शामिल हो गए।

ठाकुर देशराज जी लिखते हैं कि ईसा की चौथी सदी से पहले जांगल-प्रदेश में आबाद हुए थे। इनके अधिकार में लगभग चार सौ गांव थे। सीधमुख राजधानी थी। राठौरों से जिस समय युद्ध हुआ, उसय समय कंवरपाल नामी सरदार इनका राजा था। इस वंश के लोग धैर्य के साथ लड़ने में बहुत प्रसिद्ध थे। कहा जाता है दो हजार ऊंट और पांच सौ सवार इनके प्रतिक्षण शत्रु से मुकाबला करने के लिए तैयार रहते थे। यह कुल सेना राजधानी में तैयार न रहती थी। वे उत्तम कृषिकार और श्रेष्ठ सैनिक समझे जाते थे। राज उनका भरा-पूरा था। प्रजा पर कोई अत्याचार न था। सत्रहवीं शताब्दी में इनका भी राज राठौंरों द्वारा अपहरण कर लिया गया।

इनका राज्य बहुत खुशहाल था। प्रमुख ठिकानों के सरदारों का चुनाव होता था। राज्य में किसानों,मजदूरों,धर्म प्रचारकों को विशेष संरक्षण प्रदान था। यहां कंस्वा जाटो का राज किसी न किसी रूप में 1068 से 16वी शताब्दि के पूर्वार्ध(1530/1550) तक रहा।

लेकिन कितने दुःख की बात है कि आज इनके वंशज ही इन्हें भुले बैठे हैं।एक आध बुजुर्ग आदमी को ही वह स्वर्णिम काल धुंधला धुंधला याद है। सिधमुख में इनकी प्रतिमा लगनी चाहिए ताकि आने वाली पीढियां इन्हें याद रख सके। और उससे भी बड़ी बात यह है कि यहां कि यहां चूरू से हर बार कस्वां ही mp बनते हैं लेकिन फिर भी कोई स्टेचू नहीं।उस समय जांगलपर्देश(बीकानेर से चुरु तक) लगभग 7 जाट राज्य थे।उनमें से किसी की भी प्रतिमा उनकी राजधानी में भी नहीं है।

जय महाराजा कंवरपाल सिंह। जय जय श्री राम।
चौधरी जयदीप सिंह नैन

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