Thursday 9 August 2018

मातृभक्त महाराजा जवाहर सिंह, पुष्कर यात्रा और मांडवा मण्डोली का युद्ध

मातृभक्त महाराजा जवाहर सिंह, पुष्कर यात्रा, मांडवा मण्डोली युद्ध
पुष्कर यात्रा- मांडवा मण्डोली युद्ध
महाराजा जवाहर सिंह की पुष्कर यात्रा

महाराजा जवाहर सिंह की माता महारानी किशोरी देवी ने अपने बेटे से पुष्कर स्नान की इच्छा जाहिर की। महारानी किशोरी देवी की अपने उदर से कोई संतान न थी वे महाराजा जवाहर सिंह को अपना दत्तक पुत्र मानती थी।तो महाराज ने अपनी माता से कहा कि जल्द ही वे उनकी इच्छा पूरी करेंगे।

 संयोग से उसी समय महाराजा जवाहर सिंह के मित्र मारवाड़ के शासक विजय सिंह राठौड़ ने भी उन्हें कुछ सामरिक समझौतों व पुष्कर स्नान के लिए आमंत्रित किया।

उन्होंने जयपुर के महाराजा माधो सिंह से उनके राज्य से होते हुए जाने की अनुमति मांगी।तो माधो सिंह ने उन्हें बिना सेना के कुछ अंगरक्षकों के साथ जाने की सलाह दी।

माधो सिंह व जवाहर सिंह सम्बन्ध अच्छे नहीं थे क्योंकि महाराज सुरजमल ने ईश्वरी सिंह का पक्ष लेकर उन्हें राजा बनाया था।माधो सिंह वह कड़वाहट अब तक नहीं भुला था। दोनों में सीमा को लेकर भी विवाद था। इसलिए महाराजा जवाहर सिंह को षड्यन्त्र की बू आने लगी। तो उन्होंने अपनी सेना के साथ जाने का निश्चय किया।

इसी समय प्रताप सिंह नरुका (जिसे माधो सिंह ने जयपुर से निकाल दिया था व उसके भाई बन्धु उसे मारना चाह रहे थे तो महाराजा सुरजमल ने उसे शरण दी व उसकी रकह की थी तब से वह यहां रहकर सेवा कर रहा था) गुप्त रूप से जयपुर चला गया और जवाहर सिंह से विस्वासघात करके माधो सिंह से मिल गया उसकी अधीनता स्वीकार ली।उन्होंने नीचे नीचे जवाहर सिंह के खिलाफ षड्यन्त्र शुरू कर दिए और अन्य राजपूत सामंतों को उनके खिलाफ भड़काकर अपने साथ मिला लिया।

इस विषम परिस्तिथि में महाराज जवाहर सिंह को दुष्मनो के घर न जाने के लिए कई सलाहकारों ने कहा। परन्तु महाराजा जवाहर सिंह मातृभक्त थे उन्होंने साफ किया कि वे किसी भी कीमत पर अपनी माता को पुष्कर स्नान जरूर करवाके लाएंगे।
सलाहकारों ने किसी ओर दिन जाने को कहा परन्तु जवाहर सिंह बोले अब तो कार्तिक पूर्णिमा को ही स्न्नान करेंगे अगर हम इन सबके कारण रुक गए तो इनका हौसला बढ़ेगा और भरतपुर खतरे में पड़ जायेगा।

महाराजा जवाहर सिंह पूरे गाजे बाजे के साथ पुष्कर पहुंचे।वहां महाराजा विजयसिंह राठौड़ ने ऊनका भव्य स्वागत किया।और उन दोनों ने आपस मे पगड़ी बदलकर एक दूसरे को भाई माना।विजय सिंह ने जवाहर सिंह के आने पर विशाल पुष्कर सम्मेलन भी अयोजिय किया।भव्य क्रीड़ाये प्रतियोगिताएं हुई।दान पुण्य किया गया।माता किशोरी व जवाहर सिंह ने पुष्कर स्नान के बाद खूब दान किया और वहां मन्दिर व घाटों की स्थापना की।

पुष्कर स्नान पहले सिर्फ शाही लोगो के लिए या उनके चहेतों के लिए ही था किसी भी जाति के गरीब को यहां नहाने की अनुमति नहीं थी। लेकिन महाराजा जवाहर सिंह ने वह सबके लिए खोल दिया व दोनों महाराजाओं ने हर हिन्दू को वहां स्नान करवाया।उन्होंने कहा कि धार्मिक स्थान धर्म के हर व्यक्ति के लिए खुला रहना चाहिए।

यह खबर जब जयपुर पहुंची तो उन्होंने इसका बहाना लेकर अन्य रूढ़िवादी राजपूतो को भड़काया की जवाहर सिंह ने पुष्कर में दलितों को भी प्रवेश दिलवाकर शाही परम्परा को तोड़ा है और सबको अपमानित किया है।
इस तरह माधो सिंह ने बड़ी सेना इकट्ठी कर ली।असल मे वह जवाहर सिंह से द्वेष रखता था।और सीमाओं पर भी जवाहर सिंह व माधोसिंह के आपसी मतभेद थे।

इधर महाराजा विजयसिंह राठौड़ व महाराजा जवाहर सिंह में सभी हिन्दू राजाओ को एक होकर अन्य देश विरोधी शक्तियों से मुकाबला करने व मराठो को उत्तर भारत में विस्तार करने से रोकने के लिए समझौता हुआ था।विजयसिंह इस सबसे अनजान थे और उन्होंने कहा था कि सभी जाट राजपूत को एक झंडे के नीचे लाकर अपने क्षेत्र में शांति कायम करेंगे।

कुछ समय पश्चात विजयसिंह राठौड़ को माधोसिंह की तैयारियों का ज्ञान हुआ तो वे बिफर पड़े। उन्होंने भटराजा सदाशिव से कहा कि अगर जवाहर सिंह के लिए कोई षड्यन्त्र रचा जा रहा है तो वह स्वयं कच्छवाहा सीमा तक उन्हें छोडने जाएगा। सदाशिव माधो सिंह की तरफ था उसने कहा कि ऐसा कुछ नहीं है वे तैयारी सिर्फ जज्बे के लिए हो रही है।उसने विजयसिंह को विस्वास दिलवाया और जवाहर सिंह को दुसती के रूप में उपहार भी भेंट किये लेकिन जवाहर सिंह को संदेह हो चुका था।उन्होंने शत्रु में भय पैदा करने के लिए कहा कि वे शांति चाहते हैं बाकी उनकी हर तरह की स्तिथि से निपटने की पूरी तैयारी कर रखी है।

उसके बाद जवाहर सिंह ने विजयसिंह से विदा ली व दोनों अपने गंतव्य की ओर चल दिये।

तो रास्ते मे मांडवा मण्डोली घाटी से एक जगह दो पहाड़ियों के बीच दर्रे से गुजर रहे थे। वह दर्रा इतना संकरा था कि उसमें से सैनिको को लम्बी कतार से गुजरना था।करीब आधी सेना गुजरने गयी थी व तोप और भारी भरकम हथियार भी आधे पीछे रह गए थे। उसी समय माधो सिंह की सेना ने सूर्योदय से पूर्व आक्रमण कर दिया।अच्चानक व धोखे से हुआ इस आक्रमण का पुरोहित कृपाराम ने डटकर सामना किया और महाराज तक समाचार पहुंचाया की कच्छवाहो ने आक्रमण कर दिया और वे लड़ना चाहते हैं क्या करना है?

महाराज ने विचार विमर्श करके व शत्रु की मनोस्तिथि देखकर लड़ने को कहा और चलते चलते लड़ने को कहा ताकि जल्दी से संकरा दर्रा पार किया जा सके।
यह युद्ध चलता रहा दोपहर तक माधोसिंह की सेना का पलड़ा भारी रहा और जाटो के बहुत से सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए। लेकिन दोपहर तक दर्रा पर हो गया उसके पश्चात जाट सेना ने कहर ढाना शुरू कर दिया।शत्रु की संख्या दोगुनी थी।परन्तु फिर भी जवाहर की सेना ने शत्रु के हजारो सैनिको को काट दिया। और डटकर मुकाबला किया। शाम तक की सेना को तीतर बीतर कर दिया गया।
और युद्ध जीतकर अपने गंतव्य की ओर चल दिये।

इस युद्ध को रक्तपात का बहुत बड़ा युद्ध कहा जाता है। इसमें करीब 2000 जाट व 3000 माधोसिंह समर्थित राजपूत मारे हुए। राजपूतो के बड़े बड़े सेनापति व सरदार मारे गए। उस समय उनके सरदारों के ठिकानों में औरतों व बच्चों बूढों के अलावा कोई नहीं बचा था।सिर्फ 10-15 साल के बच्चे ही बचे थे।

जवाहर सिंह शांति चाहते थे परन्तु धोखे से हुए आक्रमण का जवाब देना उनकी मजबूरी बन गया।

इस युद्ध का दोनों ही राज्यो पर बुरा प्रभाव पड़ा व वे कमजोर हुए।

परन्तु एक तो पुष्कर सबके लिए खुल गया व  हिन्दुओ में रूढ़िवादिता कम हुई।साथ ही शत्रु के घर मे लड़कर शौर्य की मिशाल भी छोड़ी।
दूसरा उन्होंने ऐसी विषम परिस्थितियों में भी अपनी माता की पुष्कर स्नान की इच्छा को पूरा करके मातृभक्ति का एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत कर दिया।

जब महाराजा विजयसिंह राठौङ तक माधो सिंह की छलता बात पहुंची तो वे बहुत गुस्सा हुए।वे माधो सिंह का तो कुछ कर नहीं सकते थे परंतु उन्होंने भटराजा सदाशिव को खूब फटकारा व अपने डेरे से निकाल दिया क्योंकि उसी ने सच्चाई को छुपाया था।

जय जवाहर जय बजरंगी।
जय सूरजमल जय भवानी।

जय जय बृजराज।जय जय गिरिराज।

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