Thursday 9 August 2018

महाराजा सूरजमल का द्वितीय दिल्ली अभियान-बलिदान गाथा

महाराजा सूरजमल का द्वितीय दिल्ली अभियान व बलिदान गाथा-1763

महाराजा सूरजमल
हिन्दू ह्रदय सम्राट महाराजा सूरजमल

हिन्दू ह्रदय सम्राट महाराजा सूरजमल की नजरों में दिल्ली सदा खटकती रहती थी।वे दिल्ली को मुगलों से मुक्त करवाकर गुलामी का कलंक धोने की इच्छा रखते थे। इस उद्देश्य के लिए उन्होंने 1753 में भी दिल्ली पर आक्रमण किया था व ज्यादातर जीत ली थी। पर कुछ गद्दारों के कारण उन्हें सन्धि करनी पड़ी थी।

बात 1763 की है दिल्ली के मुगल दरबार मे एक ब्राह्मण काम करता था।उसकी बेटी चन्दनकौर बहुत सुंदर व धर्म परायण थी। बादशाह ने एक दिन उसे देख लिया और उससे शादी करने की इच्छा जाहिर की।लेकिन धर्मपरायण चन्दनकौर ने शादी से मना कर दिया तो बादशाह ने उसे जेल में डाल दिया।वहां एक मेहतरानी ने चन्दनकौर को सलाह दी के पूरे हिंदुस्तान में सिर्फ एक ही हिन्दू सम्राट है जो अबलाओं व धर्म की रक्षा करने के लिए दिल्ली से भी टक्कर ले सकता है।और वह है भरतपुर में बैठे जटवाड़े के शासक महाराजा सूरजमल।
किसी तरह से चन्दनकौर ने खत लिखकर अपनी माता के माध्यम से अपना दुःख महाराजा सूरजमल के दरबार तक पहुंचाया।
महाराजा सूरजमल ने जब खत पढ़ा और उसकी माता की व्यथा सुनी तो उनकी आंखों में आंसू आ गए।परन्तु दिल्ली से टक्कर लेने का मतलब था पूरे हिंदुस्तान से टक्कर लेना।हर मुसलिम से व हर सेक्युलर हिन्दू से टक्कर लेना।और इसके लिए सालो मेहनत की आवश्यकता होती है।परन्तु उन्होंने कुछ भी न सोचा और अपना  वीर सैनिक हरचंद गुर्जर को दिल्ली भेजा।

वहां जाकर हरचंद ने महाराजा सूरजमल का संदेश नजीब को सुनाया व चन्दनकौर को रिहा करने का आदेश सुनाया।मगर नजीब ने कुछ न सोचा उस मूर्ख ने हरचंद के साथ साथ महाराजा सूरजमल को भी अपमानित करने के लिए कहा कि जा उस सूरजमल को कह देना की अपनी जाटनी भी साथ ले आएगा।महारानी का अपमान सुनते ही वीर हरचंद ने अपनी तलवार निकाली और कहा कि नजीब अगर महाराज दिल्ली आए तो गिड़गिड़ायेगा तू हम अपनी माता व अपने राज्य का अपमान कभी नही सहेंगे।यह कहते हुए उसने नजीब पर हमला बोल दिया लेकिन पूरा दरबार ही नजीब का था।चारों तरफ से सैनिकों ने हमला कर दिया।जिसमें कई मुल्लो को मारकर हरचंद शहीद हो गया।

यह खबर महाराजा सूरजमल तक पहुंची तो वे आग बबूला हो उठे।और अपनी सेना को दिल्ली की ओर मुख करने का आदेश दिया।चूंकि महाराजा सूरजमल दिल्ली पर आक्रमण की तैयारी पहले से ही कर रहे थे परंतु सही समय नहीं आया था।इस घटना के होने के कारण उन्होंने पहले ही आक्रमण करने की ठान ली।
तैयारियां पूरी नहीं थी उनके मंत्री रूपाराम कटारा ने उन्हें समझाया भी।मगर महाराजा ने कहा कि एक दुष्ट एक हिन्दू बेटी को कैद किये हुए है  और हम सबको ललकार रहा है।हमारे दूत भेजे हुए वीर सैनिक को भी उसने नहीं बख्शा।उनके मंत्री ने कुलपुरोहित से भी कहलवाया कि यह समय ग्रहदशा के अनुसार ठीक नहीं है।परन्तु महाराजा सूरजमल ने कहा कि वीर जब चले तभी समय है।विजय या वीरगति।

आखिरकार दिल्ली पर आक्रमण कर दिया गया।हिंडन नदी तक कब्जा करके उसे पार कर लिया गया।गाजियाबाद पर भी महाराजा सूरजमल की प्रतापी सेना ने कब्जा कर लिया।जोरदार तोड़फोड़ की।नजीब का कलेजा हिल गया।उसने तत्काल महाराजा सूरजमल को खत लिखा व उनकी शर्त स्वीकार कर ली और चन्दनकौर को सुरक्षित भेज दिया।और युद्ध विराम करने का आग्रह किया।लेकिन महाराजा सूरजमल को तो वीर हरचंद के बलिदान का भी प्रतिशोध लेना था।उन्होंने उत्तर दिया कि डर क्यों रहे हो नजीब बाहर निकलो मैं इतनी दूर आ गया तुम दो कदम नहीं आ सकते क्या?आजा दम है तो छूकर दिखा चरणों की धूल को ही।महान जाट क्षत्राणी महारानी किशोरी देवी भी मेरे साथ है।

फिर दोबारा से युद्ध शुरू हो गया जाट सेना ने मुगलों के छक्के छुड़ा दिए।नजीब के हालात पतले हो गए थे।ज्यादातर दिल्ली पर भगवा पभुत्व कायम हो गया था।

फिर एक दिन युद्ध चल रहा था तो दोपहर को ही महाराजा सूरजमल को महारानी की चिंता हुई।वे अकेले ही अचानक से उनसे मिलने के लिए शिविर में आ गए।उनको देखकर वे युद्ध देखने लगे गये। उनका पुत्र नाहर सिंह व सेनापति मंशाराम जाट वीरता से लड़ रहे थे।उनका ध्यान उसी तरफ था।तभी एक मुगलों के लुटेरे सरदार ने उन्हें निहत्थे खड़े देख लिए।महाराजा सूरजमल का ध्यान नहीं गया और वे नदी किनारे कुछ सैनिको के साथ टहलने लगे।और युद्ध क्षेत्र से थोड़े दूर निकल गए। झाड़ियों में छिपते छिपते मुगल सैनिक भी वहां आ गए। उन्होंने अचानक से हमला कर दिया।सब वीरता से लड़े थे।परन्तु पीछे से झाड़ियों में से दो तीन गोली मुगल सैनिक की उनके शरीर में लगी।इसके बाद मुगल सैनिकों ने उन पर तलवारों से प्रहार किया।महाराजा सूरजमल शहीद हो गए।पीठ पीछे वार करके धोखे से व युद्ध नियमो का उल्लंघन करके भी मुगल सैनिक डरे हुए थे व उन्हें विस्वास नहीं हो रहा था कि सूरजमल का मरना भी सम्भव है।महाराजा सूरजमल का कोई अंग उनके परिवार को नहीं मिला।सिर्फ एक दांत से ही समाधि बनाई गई थी।

जाट सेना अगले दिन तक अनुशासन में लड़ती रही क्योंकि उन तक एक दिन तक कोई खबर नहीं पहुंची थी।युद्ध अब भी पूर्ण रुप से हिन्दू वीरो के ही हक में था।लेकिन जैसे ही यह खबर उनके बेटे नाहर सिंह तक पहुंची तो वे दुखी हो गए व सेना को वापिस भरतपुर चलने का आदेश दिया और महाराजा सूरजमल की तलाश करने को कहा क्योंकि कई दिनों तक किसी को भी इस अनहोनी पर विस्वास नहीं हुआ था।इस तरह महाराजा सूरजमल अपने जीवन काल में युद्ध के मैदान में कभी भी पराजित नहीं हुए।

उस समय उनके वीर पुत्र महाराजा जवाहर सिंह फरुखनगर में थे व नवविजित किलो की रक्षा कर रहे थे। जब यह खबर उन तक पहुंची तो वे प्रतिशोध की ज्वाला में जल उठे।
आगे आपको बताया जाएगा कि उन्होंने क्या प्रतिज्ञा ली।व किस तरह एक बार फिर दिल्ली पर चढ़ाई की।

जय हिन्दू ह्रदय सम्राट महाराजा सूरजमल की।

जय सूरजमल। जय भवानी।

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