Thursday 9 August 2018

गुड़गांव के शीतला माता मंदिर निर्माण कथा- हिन्दू ह्रदय सम्राट महाराजा सूरजमल

माता के आशीर्वाद से हिन्दू सम्राटों ने की बढ़ई की कन्या की रक्षा व मन्दिर निर्माण कथा

महाराजा जवाहर सिंह और महाराजा सूरजमल
शीतला माता मंदिर निर्माण कथा
महाराजा जवाहर सिंह और महाराजा सूरजमल

गुड़गांव का शीतला माता मंदिर बहुत प्रसिद्ध व भव्य मंदिर है यहां दूर दूर से श्रद्धालु माता के दर्शन करने आते हैं।महाभारत के समय गुरु द्रोणाचार्य की पत्नी माता कृपी यहां सती हुई थी।

बात 1750 के आस पास की है।गुड़गांव के पास के गांव(हरियाणा) में एक गरीब बढई रहता था।उसकी एक बहुत सुंदर कन्या थी।उसकी सुंदरता का जिक्र दिल्ली के दरबारों तक भी पहुंच गया था।कहते हैं कि दिल्ली के मुस्लिम बादशाह ने अपने कुछ दूत भेजकर बढई को संदेश भिजवाया कि बादशाह वह अपनी बेटी को 10 दिन के अंदर अंदर दरबार में पहुंचा दे वरना ठीक नहीं रहेगा। बढ़ई बेचारा क्या करता वह रोने लगा।फरियाद लेकर खाप पंचायत के पास गया।पंचायत ने कहा कि बादशाह से लड़ने के लिए बहुत ज्यादा हथियार चाहिए जिसका प्रबंध फिलहाल हमारे पास नहीं है।
इसलिए फैसला हुआ कि वह महाराजा सूरजमल से प्रार्थना जरूर करें।धर्मप्रतापी महाराज उनकी जरूर मदद करेंगे।

बढई ने वैसा ही किया वे भरतपुर दरबार में पहुंचे।और अपनी व्यथा महाराज सूरजमल को सुनाई।महाराजा सूरजमल यह सुनकर क्रोधित हो उठे व तुरंत अपने वीर प्रतापी पुत्र महाराज जवाहर सिंह को बुलाया।और बढ़ई को कहा कि वह निश्चित होकर घर जाए आपकी बेटी हमारी बेटी है।और हम अपनी छत्रछाया में हिन्दुओ की पगड़ी पर कभी भी दाग नहीं लगने देंगे।

उसके बाद उन्होंने हिन्दू वीर शिरोमणि महाराजा जवाहर सिंह को बढई व उसकी कन्या की रक्षा हेतु भेजा।
महाराज जवाहर सिंह अपनी रुद्रांश जाट सेना के साथ चल पड़े।जब रास्ते में माता कृपी की मढ़ी आयी तो उन्होंने वहां माता से विजयश्री का आशीर्वाद मांगा व विजय के बाद ऊनका पक्का मन्दिर बनवाने की प्रतिज्ञा भी ली। कुछ लोगो का कहना है कि माता की मढ़ी के पास आकर महाराज के घोड़े रुक गए थे व आगे नहीं चले।तब ऊनका ध्यान मढ़ी की तरफ गया था।फिर आशीर्वाद प्राप्त किया।

फिर जवाहर सिंह बढ़ई के घर पहुंचे अगले दिन बादशाह के मुस्लिम सैनिक वहां आये तो जवाहर सिंह ने उन्हें बुरी तरह मारा और पिशाच बादशाह को संदेश भेजा कि यह हमारी बहन है आंख उठाकर भी देख लेना।यह तकती पर लिखकर मुस्लीक सैनिको के गले मे टांगकर उन्हें दिल्ली की तरफ भगा दिया।बादशाह ने भी शक्तिशाली महाराज सुरजमल से पंगा लेना ठीक न समझा और अपनी इच्छा त्याग दी।

इस प्रकार महाराजा जवाहर सिंह ने उस कन्या की रक्षा की व वापिस भरतपुर आकर महाराजा जवाहर सिंह ने माता शीतला(कृपी) के बारे में बताया।

 फिर महाराजा सूरजमल ने वहां एक भव्य मंदिर का निर्माण किया और महाराज जवाहर सिंह ने स्वयं अपने कर कमलों से वहां सवा किलो सोने की मूर्ति स्थापित की।

एक बार फिर कईं सालों बाद किसी बादशाह ने वहां से मूर्ति हटवाकर तालाब में फिंकवा दी थी तो वहां के एक बहुत बड़े जमींदार दादा सिंघा कटारिया जाट ने उस मूर्ति को पुनः स्थापित किया था व अपना महल और बहुत सी जमीन मन्दिर के नाम कर दी थी।कहते हैं कि उस समय माता के भक्त सिंघा जाट के चरणों को छूने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी थी।आज भी दादा सिंघा के वंशज गुड़गांव में रहते हैं।यह मंदिर 500 गज से भी अधिक क्षेत्र में फैला हुआ है।अब यह मन्दिर सरकार के अधीन है।
हिन्दू वीर शिरोमणि
Maharaja Jawahar Singh

माता शीतला की बहुत मान्यता है और उन्हें मऊ जनपद की कुलदेवी भी माना जाता है।बहुत दूर दूर से भक्त माता की पूजा करने के लिए इस मंदिर में आते हैं और यह मंदिर बहुत प्रसिद्ध है।

जय जवाहर जय बजरंगी।
जय सूरजमल जय भवानी।

जय शीतला माता की

1 comment:

  1. शीतला माता मंदिर यात्रा के लिए अच्छा विकल्प है। आपने बहुत अच्छा लेख लिखा है। आप हमें लेख को भी देख सकते है। बिर्थी वाटरफॉल

    ReplyDelete