Thursday 9 August 2018

महाराजा जवाहर सिंह का दिल्ली पर आक्रमण

महाराजा जवाहर सिंह का दिल्ली पर आक्रमण

महाराजा जवाहर सिंह का राजतिलक व प्रतिशोध की प्रतिज्ञा और तैयारी

जाट क्षत्रिय महाराजा
हिन्दू वीर शिरोमणि महाराजा जवाहर सिंह

महाराजा सूरजमल के स्वर्गवास के समय हिन्दू वीर शिरोमणि महाराजा जवाहर सिंह फरूखनगर में थे। उनको अगले दिन इसका समाचार मिला तो वे क्रोधित व व्याकुल हो उठे। उनके मन में प्रतिशोध की ज्वाला उठने लगी।
उधर भरतपुर में उत्तराधिकार के लिए लड़ाई शुरू हो गयी व षड्यन्त्र रचे जाने लगे। यह पता चलते ही जवाहर सिंह ने सभी को फटकारा व घोषणा कि के जवाहर सिंह, महाराज के साथ हुए धोखे व उनकी हत्या का बदला लेगा।प्रजा व राज्य के सम्मान के लिए वह ये कार्य करेगा और इसका कुछ समाधान होने के बाद ही उत्तराधिकार की बात होगी। उत्तराधिकार और राज पाट के लिए लड़ते हुए शर्म आनी चाहिए। यह सुनकर सबको अपनी गलती का अहसास हुआ व विरोधी अपनी चौकड़ी भूल गए।

उसके बाद महाराज जवाहर सिंह डीग पहुंचे और पिताजी की शोक सभा के पश्चात सबका समर्थन इकट्ठा किया अपने पिता की शोक सभा के बाद उन्होंने प्रतिशोध की बात दोहराई व अपनी रणनीति बताई।जनता ने भी उन्हें खुला समर्थन दिया।उन्होंने गोवर्धन में महाराज की छतरी बनवाई। जिसके पश्चात 30 दिसम्बर 1763 को कुलपुरोहित घमंडीराम व राजगुरु महंत रामकिशन ने ऊनका राज तिलक किया।

आस पास के पड़ोसी व अन्य शक्तिशाली हिन्दू राज्यो को पत्र लिखे व दूत भेजे के अब दिल्ली को आजाद कराना है।

उन्होंने सीखो मराठो को पत्र लिखे और कहा कि वे उन्हें कीमत देने को तैयार है और इस धर्म कार्य मे उनका सहयोग करें।
पेशवा को अपने मित्र से पत्र लिखवाया कि हम आपके हितेषी और आज की स्तिथि में जवाहर आपका सब हिन्दुओ में एकमात्र व सबसे बड़ा हितैषी है।

उन्होंने अपने राज्य के सीमावर्ती क्षेत्र से रुहेले व अन्य मुस्लिमो को खदेड़ दिया।जब कुछ मुस्लिम नवाबो ने जटवाड़े की ओर कदम बढ़ाए तो सिख सरदार जस्सा सिंह अहलूवालिया ने दूसरी तरफ आक्रमण कर दिया जिस कारण उन नवाबों को अपनी राजधानी बचाने के लिए वापिस आना पड़ा।

इससे महाराज जवाहर सिंह को समय मिल गया व उन्होंने दरबार के अपने विरोधियों को अपने पाले में कर लिया। इस काम मे महारानी किशोरी देवी,रानी हंसिया व महंत रामकिशन ने उनकी बहुत मदद की।उनकी माताओं ने उनकी आर्थिक सहायता की।

उन्होंने एक श्री हनुमान गोल सेना का भी निर्माण किया। और सेना की संख्या बढ़ाई।

यह सब देखकर दिल्ली का बादशाह नजीबुद्दौला डर गया क्योंकि जवाहर सिंह की तैयारी अकेले प्रतिशोध की ही नहीं दिल्ली के विनाश व धर्म की लड़ाई बनती जा रही ह जिस्के कारण उन्हें खुला समर्थन मिल रहा है।

उसने जवाहर सिंह को पत्र लिखा व क्षमा मांगी और खुद को निर्दोष साबित करने की कोशिश की। मित्रता का हाथ बढ़ाया और शांति के लिए भीख मांगी। उसने कहा कि वह पराक्रमी महाराजा सूरजमल के बेटे से युद्ध नहीं करना चाहता।इसमें बहुत नुकसान होगा मैं बर्बाद हो जाऊंगा तो क्या आपके पिता वापिस आ जाएंगे।इसमें बलूची डाकुओं की गलती है उन्होंने महाराज के साथ धोखा किया है।

नजीब ने अन्य मर्राठा व जयपुर आदि हिन्दू राजाओ को  भी जवाहर सिंह को समझाकर रोकने के लिए पत्र लिखा।

लेकिन सब व्यर्थ गया।अब जवाहर सिंह ने लगभग 90 हजार से 1 लाख की हिन्दू सेना तैयार कर ली थी।

 दिल्ली में युद्ध लड़ने की बजाय खुद को बचाने की तैयारियां हो रही थी। उन्होंने फाटक बंद कर लिए व बादशाह ने खुद को सुरक्षित करने पर ज्यादा जोर दिया।

इस युद्ध को दूसरे पानीपत के युद्ध के रूप में जाना जाता है।क्योंकि मराठा व अब्दाली के पानीपत संग्राम के बाद यह दूसरा मौका था कि एक बड़ी संख्या में व पूर्ण तैयारी के साथ हिन्दू सेना संस्क्रति व देश की रक्षा के लिए मुस्लिम सत्ता से भिड़ने जा रही थी। इस युद्ध का अब मुख्य मकसद दिल्ली से मुगल सत्ता का विनाश बन गया था।

बन्द करलयो फाटक भाई,जवाहर आवेगा,
गुस्से में है लाल सूरज का,मुगला री दिल्ली न तोड़ेगा।
कट्ठे होके छुप जाओ सारे,एक एक न कसूता फोड़ेगा।।

दिल्ली विजय अभियान-महाराजा जवाहर सिंह(1764)

जाट महाराजा
Maharaja Jawahar Singh

महाराजा जवाहर सिंह ने एक विशाल समाहरोह करके जनता को एकत्रित किया व ओजस्वी भाषण दिया कि हमें महाराज के साथ हुए धोखे व उनकी हत्या व पानीपत के हर संहार का मुगलो से प्रतिशोध लेना है।और दिल्ली को आजाद करवाकर अपने धर्म व संस्कृति को आजाद करवाना है। भले ही इसके लिए कितना ही संघर्ष क्यों न करना पड़े।

यह सुनकर नागरिकों में हौसला आ गया।युवक सेना में भर्ती होने लगे।उन्होंने सिखों मराठों गोहद जयपुर आदि अनेकों हिन्दू शासकों को पत्र लिखकर सहायता मांगी व कीमत देने का भी प्रलोभन दिया।गोहद, मराठो व सीखो ने सहायता देने का वादा किया।

इस तरह महाराज ने 20,000 मल्हारराव होल्कर व 15,000 सिख जाटो और गोहद की 5,000 सेना समेत लगभग 1 लाख सैनिको के विशाल दल के साथ दिल्ली पर फिर से हिन्दू संस्कृति को मजबूत करने का इरादा किया।

उन्होंने भरतपुर दुर्ग के महलों के सामने हनुमान जी की प्रतिमा लगवाई और पण्डित रूपराम कटारा को काफी आभूषण व धन दान दिया।फिर उन्होंने अपने कुलदेव भगवान लक्ष्मण व कुलदेवी माता राजश्रीदेवी की पूजा की। और गोवर्धन की तरफ से दिल्ली दरवाजे से गिरिराज महाराज का नारा लगाते हुए दिल्ली के लिए प्रस्थान किया।गोवर्धन में उन्होंने अपने पूर्वज श्री कृष्ण  भगवान की पूजा की व महाराजा सूरजमल की समाधि से आशीर्वाद लिया।और फिर बल्लभगढ में जाकर अपना डेरा डाला। उधर दिल्ली के मुगल बादशाह की घिग्गी बंधी हुई थी।वह बार बार पत्र लिखकर जवाहर सिंह को युद्ध न करने के लिए गिड़गिड़ा रहा था।
मल्हारराव भी अपने 20,000 सैनिको के साथ आकर मिल गए।

बल्लभगढ में 4 अक्टूबर 1764 को दशहरे के दिन उन्होंने पूजा की व दान दक्षिण करके दिल्ली पर आक्रमण कर दिया। उन्होंने नजीब की सेना के छक्के छुड़ा दिए।मुगल सैनिको की देह को जटवाड़ी तलवारों ने चिर दिया और दिल्ली में दाखिल हो गए। उन्होंने नजीब को खुले में आकर लड़ने को कहा ताकि दिल्ली की जनता को परेशानी न हो।परन्तु कायर नजीब नहीं निकला।

फिर सिख जाट सरदार बाबा बघेल सिंह, जस्सा सिंह व चस्सा सिंह भी अपने 12 से 15000 सैनिको के साथ पहुंच गए। उन्हे प्रतिदिन 15,000 रुपये देने का वादा किया गया था।मल्हाराव होल्कर को भी बड़ी कीमत पर लाया गया था।

फिर महाराजा जवाहर सिंह ने पुराने किले पर आक्रमण किया व बड़ी चरुराई से  मुगलों को साफ कर दिया।
मल्हारराव इस युद्ध में दिलचस्पी नहीं दीखा रहे थे।महाराः जवाहर सिंह को तभी उन पर संदेह हो गया था लेकिन उस समय वे कर भी क्या सकते थे।मल्हारराव उन पर नजीब से बातचीत का दबाव बना रहे थे व अन्य सेनापतियों को भी गुमराह कर रहे थे।

महाराज जवाहर सिंह ने वहां लगे अष्टधातु के किवाड़ उतार लिए जो 462 साल पहले अलाउद्दीन खिलजी चितौड़ से जितकर लाया था।इस तरह उन्होंने हिन्दुओ के इस कलंक को भी धो दिया।इस युद्ध में वीर यौद्धा पाखरिया(पुष्कर सिंह) शहीद हो गए।

दिल्ली में चारो तरफ गोलाबारी चल रही थी।उमेदगिरी गोसाई बल्लभगढ के तेवतिया राजा, और होडल के बलराम सिंह नाहरवार आदि अनेकों वीर मुगलो के रक्त से धरती लाल करते जा रहे थे।

सारी दिल्ली में मुगलो में हाहाकार मची हुई थी। मुगलों के महलों में जटवाड़ी सेना ने भूसा भरवा दिया था।
दिल्ली की बहुत सी महत्वपूर्ण जगहों पर कब्जा हो चुका था। लेकिन मल्हारराव नजीब से पहले से ही मिलजे हुआ था। उन्होंने सेनापतियों का मनोबल तोड़ना शुरू कर दिया।
उधर से अहमदशाह दुर्रानी अपने मजहब का राज खत्म होता देखकर नजीब की सहायता करने के लिए दौड़ पड़ा और हिंदुस्तान की ओर बढ़ने लगा। जिस कारण सारा माहौल ही बदल गया। सिख सरदारों ने उससे अपने किलो की सुरक्षा का हवाला देकर पंजाब की ओर पलायन कर दिया। मल्हारराव नजीब की ओर थे ही और उसकी बात का खुला समर्थन कर दिया व सन्धि के लिए कहने लगे। इस तरह हिन्दुओ की आपसी फूट के कारण जीती हुई स्तिथि में भी सब कुछ कमजोर पड़ गया।

अब भी जवाहर सिंह नजीब को बर्बाद करने लायक थे लेकिन इसमें वे भी बर्बाद हो जाते व दिल्ली पर कट्टर इस्लामिक जिहादी दुर्रानी का राज आ जाता।

इसलिए उन्होंने नजीब की सन्धि को स्वीकारने व दुर्रानी से मुकाबला करने के लिए भरतपुर दुर्ग को मजबूत करने  में ही भलाई समझी।नजीब की सांस में सांस आ गयी। उसने मल्हारराव को काफी खिललते व उपहार प्रदान किये।

अगर आपसी फूट न होती तो एक तो हिंदुस्तान मुगलों से आजाद हो जाता और न ही अंग्रेजो का शासन देश पर आता।

एक तो दुर्रानी था जो विदेश से अपने मजहब की रक्षा करने के लिए दौड़ पड़ा दूसरी तरफ हिन्दू थे जो लालच व जलन के कारण एक न हो पाए। यही हमारे देश की 1000 साल की गुलामी का असली कारण रहा है।और आज भी हम सिख नहीं ले रहे।

जय जवाहर जय बजरंगी।
जय सूरजमल जय शिवाजी।

4 comments:

  1. JAAT EKTA JINDABAD JAAT BALWAN JAI BHAGWAN UN VEER MAHA PURUSO KO MERA SAT SAT NAMAN 🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿

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  2. Gaandwo kyun jhoot bol k Bahadur ho jao gay tumhari ma chod di thee pathano ne

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    1. Teri terah mughlo ko apni beti na di.... Jindagi mein kuchh Kiya hai sivay dhokebaji ,mughlo ki vafadari ke..😂😂

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