Wednesday 20 June 2018

राजा दयाराम सिंह- जिसने अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए थे

भारत माता के स्वाभिमानी लाल हाथरस नरेश राजा दयाराम सिंह ठेनुआ

Jat King
राजा दयाराम सिंह

राजा दयाराम सिंह हाथरस(उत्तर प्रदेश) के राजा थे।इनके पूर्वजो ने हिन्दू धर्म रक्षा का अनोखा इत्तिहास रचा था।और इनके वंशज राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने आजाद हिंद फौज व सरकार का निर्माण किया था।

राजा दयाराम सिंह अपने पिता राजा भूरी सिंह की मृत्यु के बाद राजा बने। उन्होंने अपने राज्य को सुदृढ किया व हाथरस किले को मजबूत बनाया। प्रजा में रोजगार के साधन बढाने के लिए बाहर से कारीगर बुलाकर प्रशिक्षित किया व किसानों की भी बहुत सहायता की।
वे भगवान दाऊ जी(बलराम) के भक्त थे उनके दरबार में दाऊ जी की नित्य पूजा होती थी। उनके पिता द्वारा निर्मित किये गये दाऊ जी मन्दिर पर मेला लगता था।

उस समय देश पर अंग्रेजो का राज था अंग्रेज सभी देशी रियासतों को छल व बल से अपने अधीन करना चाहते थे। ऐसे समय में हाथरस व मुरसान रियासत स्वतंत्र थी।

इसलिए कई सालों से वे राजा दयाराम जी पर दबाव बनाए हुए थे कि वे अंग्रेजो की अधीनता स्वीकार करें। लेकिन राजा साहब स्वाभिमानी व देशभक्त थे उन्होंने झुकना स्वीकार न किया जिस कारण अंग्रेजों और राजा साहब में कई बार तनातनी हो चुकी थी।

सामरिक रूप से राजा साहब अंग्रेजो के मुकाबले बहुत कमजोर थे लेकिन फिर भी उनके स्वाभिमानी हौसले ने दम नहीं तोड़ा।

अंत मे एक दिन 4 क्रांतिकारी युवक दयाराम जी की शरण में आ पहुँचे और बोले कि राजा साहब हमें बचाइए अंग्रेज हमें झूठे हत्या के आरोप में फंसा रहे हैं।तब राजा साहब ने उन्हें निश्चिंत रहने को कहा व किले में ही अपने साथ ठहरने का प्रबंध कर दिया।

जब यह बात अंग्रेजो को पता चली तो उन्होंने राजा साहब को चारों तथाकथित आरोपियों को अंग्रेजो के हवाले करने के लिए कहा। राजा साहब ने साफ कहा कि वे निर्दोष है और मेरे देश के नागरिकों पर मैं अत्याचार नहीं होने दूँगा।

यह सुनकर अंग्रेज घबरा गए।उन्होंने देख लिया कि हाथरस आने वाले समय में उनके लिए बहुत बड़ी समस्या बन सकता है।
इसलिए 1817 में अंग्रेजों ने हाथरस व मुरसान पर आक्रमण कर दिया।(मुरसान पर उन्ही के परिवार का राज था।वहां के राजा उनके चचेरे भाई भगवंत सिंह थे) मुरसान को अंग्रेजों ने फतेह कर लिया।(मुरसान व उससे कुछ साल पहले के सासनी युद्ध के बारे में फिर कभी विस्तार से लिखेंगे)

जब अंग्रेज जनरल मार्शल के नेतृत्व में हाथरस की ओर बढ़े तो राजा साहब पूर्णतः तैयार हो गए। अंग्रेजों ने किले के चारों ओर घेरा डाल दिया। हाथरस का किला मजबूत था(जो उनके पूर्वज राजा भोज सिंह ने बनवाया था और बाद में राजा सारदल सिंह, पहुप सिंह और दयाराम ने भी इसे मजबूत किया)

मुरसान पर विजय प्राप्त करते ही अंग्रेजी सेना हाथरस पहुंची। इस बीच में हाथरस वाले संभल चुके थे। वैसे हाथरस का किला मुरसान के किले से अधिक मजबूत था। अलीगढ़ और मथुरा की ओर का हिस्सा तो और भी अधिक मजबूत था। हाथरस में रणचंडी का विकट तांडव हुआ। अंग्रेजी सेना के दांत खट्टे हो गए।
यह युद्ध संवत 1874 विक्रम तदनुसार 1817 ई. में हुआ था। लड़ाई कई दिन तक होती रही। राजा दयाराम ने अपने वीर सैनिकों के साथ दांत पीस-पीस कर अंग्रेजों पर हमले किए। प्राणों की बाजी लगा दी।
यह देखकर अंग्रेजों ने राजा दयाराम से सन्धि की भी बात चलाई लेकिन राजा दयाराम व उनके पुत्र नेकराम सिंह ने विचार विमर्श करके मना कर दिया।

जब अंग्रेजों ने देखा अब सन्धि नहीं होगी तो पूर्ण बल के साथ हाथरस-दुर्ग के ऊपर हमला किया। जाट भी वन-केसरी की भांति छाती फुलाकर अड़ गये। श्री दयारामसिंहजी बड़ी संलग्नता से दुर्ग की देखभाल में व्यस्त थे। राजा से लेकर सैनिक तक सभी बड़े चाव से युद्ध कर रहे थे। वे आज अपना या शत्रु का फैसला कर लेना चाहते थे। वे थोड़े थे फिर भी बड़े उत्साह से लड़ रहे थे। किले पर से शत्रु के ऊपर वे अग्नि-वर्षा कर रहे थे। उन्हें पूरी आशा थी कि मैदान उनके हाथ रहेगा, किन्तु अचानक ही सब बदल गया। बारूद की मैगजीन में अकस्मात् आग लग गई। बड़े जोर का घमाका हुआ, उनके असंख्य सैनिक भस्म हो गए। अब क्या था, शत्रु को पता लगने की देर थी, और फिर हाथरस स्वयं विजित हो गया।
Hathras
राजा दयाराम सिंह

राजा दयाराम ने अपने सैनिको के परिवार व खुद के परिवार को सुरक्षित बाहर निकाल दिया व फिर वे वहां से निकल कर इधर उधर दूसरे राज्य में शरण लेने के लिए दौड़े। उनके पीछे अंग्रेज लगे हुए थे और वे अंग्रेजो के आगे आगे थे झुकने को तैयार न थे। वे भरतपुर पहुंचे लेकिन भरतपुर भी उस समय अंग्रेजों से युद्ध लड़कर कमजोर हो चुका था और वहां पर अंग्रेजी एजेंट भी कार्यरत थे। सुरक्षा की दृष्टि को देखते हुये वे जयपुर पहुंचे पर वहां भी अंग्रेजों के डर से उन्हें शरण न मिली कई दिनों तक वे इधर उधर भटकते रहे।
उनके परिवार को भी रोज रोज सताया जा रहा था।
यह देखकर उनके बेटे गोविंदसिंह ने अंग्रेजों से सन्धि कर ली।
जिसके बाद राजासाहब वापिस हाथरस पहुंचे और उन्होंने अलीगढ़ में अपनी एक अलग छावनी बना ली।जहाँ वे क्रांतिकारी सैनिक तैयार कर रहे थे। वे फिर से मजबूत होकर अंग्रेजो से टक्कर लेने चाहते थे। लेकिन अंग्रेजों ने उनके राज को कभी नहीं उभरने दिया व राजा दयाराम के नजदीकियों को अंग्रेजों ने तंग करके दूर कर दिया।
आज भी हाथरस के तथा आस-पास के लोग दयाराम का नाम बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ याद करते हैं। वे बड़े उदार और दानी राजा थे। अभी तक उनकी दान की हुई जमीन कितने ही मनुष्य वंश परम्परागत से भोग रहे

इस तरह वे अपने अधूरे सपने के साथ 1841 में स्वर्ग सिधार गये। बाद में उनके इस सपने को उनके प्रपोते राजा महेंद्र सिंह प्रताप ने पूरा किया व जीवनभर अंग्रेजो से लड़कर देश को आजाद करवाया।

वन्दे मातरम।देश पर मर मिटने वाले शहीदों को कोटि कोटि नमन।जय भारत माता।

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